Zindagi Rang Shabd
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बसे-बसाए घर क्यूँ बन रहे बंजर,
बिखरते हुए लोग,बुझी हुई सी सहर,
धीरज तो धर बहेगी,शान्ति की लहर,
थम ही जाएगा ये,आखिर तूफ़ान ही तो है।
झुलसता बदन,चिलचिलाती तपन,
तड़पते हुए लोग,और तार-तार मन,
तृप्त करने को,सावन आएगा जरूर,
कब तक जलेगी ये,आखिर अगन ही तो है।
जरूर होगा दूर ये,फैला हुआ अँधेरा,
हार जाती है रात,जब आ जाता सवेरा,
सिमटेगा जरूर ये,बिखरता हुआ बसेरा,
अंततः भरेगा जरूर,आखिर ज़ख्म ही तो है।
छोड़ना मत हाथ से,आशा कि डोर,
ठान ले संकल्प और,लगा दे ज़रा जोर,
चीर कर अँधेरा तू,उगा दे आशा कि भोर,
गुज़रेगा जरूर ये,आखिर बुरा वक्त ही तो है।
मत छोड़ आस,क्यों होता तू निराश,
आएगी ख़ुशी,तुम बस रखो विश्वाश,
जरूर झूमेगा आँगन,खुशियों का पलाश,
मिलेगा जीवन जल,ये गर तेरी सच्ची तलाश है।
( जयश्री वर्मा )
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