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विषय – ” क्या हिंदी सम्मानजनक भाषा के रूप में मुख्य धारा में लाई जा सकती है? अगर हां, तो किस प्रकार? अगर नहीं, तो क्यों नहीं? “
सर्वोपरि ही सम्माननीय
यह भाषा अमीर-गरीब का भेद न जाने ,
यह धर्म-अधर्म का कोई दोष न माने ,
सबको एक धरातल पर ये लेकर आये ,
ये एक मीठी सी,सरल,अदृश्य डोर है ।
जहां हिंदी ही जन्म है,हिंदी ही कर्म है ,
यह हिंदी जीवन और हिंदी ही धर्म है ,
यह हिंदी ही हमारी दिन और रात है ,
यह हिन्दुस्तानी होने की सौगात है ।
हिंदी भाषा भाषाओं का आत्मबल है ,
हिंदी भाषा भूत,वर्तमान,और कल है ,
यह हिंदी भाषा सात सुरों का संगीत है ,
ये भाषा हिन्दुस्तान का अमर गीत है ।
ये हिंदी हिन्दुस्तानी होने की कसम है ,
ये हिंदी हिन्दुस्तानी होने की रस्म है ,
ये हिंदी भाषा ही हम सबकी पहचान है ,
हिंदी भाषा ही सब भाषाओं की जान है ।
ये हिंदी हमारी आन-बान-शान है ,
ये हिंदी ही हम सबका स्वाभिमान है ,
ये न हिन्दू,न मुस्लिम,न सिख,इसाई ,
हिंदी है बहन तो हर हिन्दुस्तानी है भाई ।
यह तो कहीं भी,कभी भी,गयी ही नहीं थी ,
हर विकास के साथ ही साथ आगे बढ़ी थी,
ये भाषा तो मुख्य धारा में सदा ही रही है ,
मानव उत्थान के साथ ही परवान चढ़ी है ।
यह भाषा सार्थक है या फिर है निरर्थक ?
यह अमीरों की है या फिर है गरीबों की ?
शिक्षितों की है या ये है अशिक्षितों की ?
इस संग सम्मान की,या अपमान की बात है ?
ये सब प्रश्न मुझे तो लगते हैं व्यर्थ ,
इन प्रश्नों का नहीं है कहीं कोई अर्थ ,
यह तो माँ की बोली,माँ के ही है सदृश्य,
इसमें अपनेपन का है अनूठा सा स्पर्श ।
यह ही हिन्दुस्तान की मुख्य भाषा है,
जन-जन को जोड़ने की इक यही आशा है ,
इस भाषा के बोल हिन्दुस्तानी इतिहास रचते है,
हमारे राष्ट्र गीत,राष्ट्र गान इसमें ही सजते हैं।
यह मुख्य थी,मुख्य है सदा मुख्य ही रहेगी,
पूरे भारत की चहेती भाषा सब संग सजेगी,
अंग्रेजी या अन्य भाषाएँ कुछ बिगाड़ न सकेंगी,
आईं जो बीच में तो सब संग-संग ही चालेंगी ।
सर्वोपरि को नहीं है,कोई डर किसी अन्य का ,
उसमें ग्राह्यता और बल है,सबके संग बढ़ने का ,
गर बढ़ी अन्य भाषा,उसे गले लगाकर चलेगी,
सर्वोपरि है हिंदी भाषा,सदा सर्वोपरि ही रहेगी ।
मेरा मानना है कि हिंदी भाषा ही एक मात्र भाषा है जो हिन्दुस्तान के एक कोने से दूसरे कोने तक बोली और समझी जाती है अतः हिंदी सम्मानजनक स्थिति में है या नहीं ? इसे मुख्य धरा में होना चाहिए या इसे मुख्य धरा में लाने का प्रयास करना चाहिए | इस तरह कि बातें मेरी दृष्टि में कोई मायने नहीं रखतीं | क्यों कि जो भाषा सर्व ग्राह्य हो ,एक देश कि पहचान हो उसे अपने वजूद के लिए सहारों कि क्या आवश्यकता ? अंग्रेजी भाषा अंतर्राष्ट्रीय भाषा है उसे सीखना और समझना एक तबके के लिए या फिर कहना चाहिए विदेशी कम्पनियों में काम करने वाले कर्मचारियों के लिए आवश्यक माना जा सकता है परन्तु इससे हिंदी के लिए कोई भय कि स्थिति नहीं बनती हाँ हिन्दुस्तान में रह कर आप यदि हिंदी नहीं समझते तो यह अवश्य विचारणीय स्थिति होगी |
हिंदी में हमारी जड़ें हैं , हिंदी हमारी पहचान है अतः हिंदी ही सर्वोपरि है और सम्मानजनक भाषा है | और यह सर्वोपरि ही रहे उसके लिए हमारे दफ्तरों और सरकारी कामकाज को हिंदी में किये जाने के प्रयास करने होंगे ताकि आम जनता के लिए सरकारी काम में भाषा आड़े न आये और सरकारी कामकाज सर्वग्राह्य हो ,सुगम हो | हम हिन्दुस्तानी हैं विश्व पटल पर हमारी भाषा हिंदी ही पहचानी जाती है | हमारे देश में विभिन्न प्रान्तों की विभिन्न भाषाओं में हिंदी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है , यह सर्वोपरि है अतः सर्वाधिक सम्माननीय भी |
सर्वोपरि को नहीं है,कोई डर किसी अन्य का ,
उसमें ग्राह्यता और बल है,सबके संग बढ़ने का ,
गर बढ़ी अन्य भाषा,उसे गले लगाकर चलेगी,
सर्वोपरि है हिंदी भाषा,सदा सर्वोपरि ही रहेगी ।
( जयश्री वर्मा )
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