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बातों की क्या कहिये,बातों का तो है अनंत अथाह संसार,
जन्म से मृत्यु तक,शब्दों से ही बंधा है जीने का आधार।
ये बातें तोतली जुबां मा,पा,ना,डा से शुरू जो होती हैं तो,
बुढ़ापे की ऊबी बेचैन,बुदबुदाहट पे ही समाप्त होती हैं।
हर किसी के जीवन के,कई पहलू की पहचान हैं ये बातें,
कभी मीठी कभी तीखी,और कभी चुगलखोर हैं ये बातें।
ये स्कूल, कालेज, ऑफिस में,शिकायत रूप में बसती हैं,
यहाँ आपकी मेहनत, ज़िम्मेदारी की पहचान हैं ये बातें।
ऑटो,बस,ट्रेन,पार्कों और कहीं किसी भी टिकट विंडो पर,
औपचारिक अपनत्व में मुस्कुराती,मेहमान सी हैं ये बातें।
अस्पताल,कचहरी,थाने या किसी दैवीय – प्रकोप के आगे,
बेबस सी सहमी आँखों में,आंसू संग सिसकती हैं ये बातें।
जीत की खुशियों भरी ठिठोली हो,या महफ़िलें सजीली हों,
उत्साह और उमंग में बहकती सी,खिलखिलाती हैं ये बातें।
पार्कों के झुरमुटों में, दरवाजों के कोनों और पर्दों के पीछे,
फुसफुसाती,लजाती,प्रेममय आवेग की परवान हैं ये बातें।
बातों के बादलों से ढंका,हर इंसान का जीवन आसमान है,
कहीं वर्षा,कहीं सूखा,कहीं आंधी और तूफ़ान सी हैं ये बातें।
उस परवरदिगार से जब कभी,किसी को संपर्क साधना हो,
गीता,कुरआन,बाइबिल,गुरुग्रंथ साहब में भगवान हैं ये बातें।
( जयश्री वर्मा )
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