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जैसा कि सभी जानते हैं कि राखी का त्यौहार अपनी अलग पहचान अलग खुशबू के साथ भारत में ही नहीं वरन दुनिया के कई देशों में मनाया जाने लगा है। यह हमारी संस्कृति की पैठ है विश्व में, इस भाई – बहन के प्रेम के त्यौहार में एक अलग तरह का प्रेम , हक़ , जिम्मेदारी , अपनापन और पूरे जनम का बंधन परिलक्षित होता है। विवाह के बाद भी स्वदेश या परदेश में रह रही बहन को अपना मायका ( माँ का घर ) पिता का आँगन ,भाई के साथ बिताए दिन ( बचपन से लेकर जवानी तक ) एक – एककर चलचित्र की तरह याद आ जाते हैं और मन व्याकुल हो उठता है अपने पुराने दिनों में पहुँच जाने को ।
हर बहन की तरह मेरे भी मन में बहुत सारी पुरानी यादें हैं , मैं और मेरे इकलौते बड़े भाई एक दूसरे से केवल दो साल छोटे बड़े हैं , अतः हमारे बीच कुछ जादा ही प्रेम और गुस्सा चलता था , अपने बड़े भाई से जिद्द करके कोई भी चीज छीन लेना , कभी – कभी बाबू जी – मम्मी जी से उनकी झूठी शिकायत भी लगाना , भैया भी कम नहीं रहे , मेरे सो जाने पर मेरी चोटियाँ पलंग के सिरहाने से बाँध देना , मैं ड्राइंग अच्छी बनाती थी प्राइज़ भी खूब जीतती थी ,जब भी मैं ड्राइंग बना रही होती वो पीछे से आकर मेरा हाथ हिला देते और मेरी पेंटिंग खराब हो जाती फिर मैं भैया को चिल्लाते हुए देर तक उनके पीछे दौड़ती रहती पर वो कभी भी मेरी पकड़ में नहीं आए , मुझे कीड़ों से बहुत डर लगता था ,जब कभी गोभी में कोई कीड़ा निकलता तो न जाने कितनी बार वो कीड़ा हाथ में लेकर भैया जी मेरे पीछे दौड़ते और मैं पूरे आँगन में चिल्लाती हुई दौड़ती फिरती , यह सब होने के बाद भी हम अन्दर से एक थे , मजाल है बाहर का कोई भी मेरे भाई को कुछ कह जाए , एक बार की बात है मैं चौथी कक्षा में थी और भैया जी पांचवी में , होली के समय पड़ोस का एक लड़का भैया जी को चमकीला पेंट लगाने को आगे बढ़ा , भैया जी ने मना किया तो वो धक्का – मुक्की पर उतर आया बस फिर क्या था मैं और भैया जी मिलकर उसपर टूट पड़े और वो लड़का वहां से भाग गया । भैया जी जब दसवीं में आए तो उन्हें नॉवेल पढ़ने का नया – नया चस्का लगा था और मेरा बस एक ही काम था जैसे वो नॉवेल कहीं से भी ढूंढ कर बाबू जी के सामने रख देना और भैया जी की डांट खिलवाना ।
मेरे भैया जी को फोटो खिचाना कभी भी अच्छा नहीं लगता था , बात उस समय की है जब मैं दसवीं में थी वो ग्यारहवीं में उस दिन वो अपने ऊँचे – ऊँचे प्लेटफार्म जूतों पर पॉलिश कर रहे थे ,बाल उनके अमिताभ स्टाइल में लम्बे – लम्बे कान ढके हुए , थे वो उस समय टी – शर्ट और पैजामा पहने मूढ़े पर बैठ कर अपने जूते पॉलिश कर रहे थे मुझे न जाने क्या सूझी मैंने कैमरा लाकर चुपके से उनकी फोटो खींच ली , हालांकि जब फोटो स्टूडियो से साफ़ होकर घर आई तो भैया जी ने मुझे इसके लिए खींच कर एक थप्पड़ रसीद किया और वो फोटो अपने पास कहीं छुपा दी ,मैं भी पक्की जासूस थी वो फोटो मैंने ढूंढ ही ली और शादी के बाद इतने वर्षों से वो मेरे पास ही है पिछले साल मैंने वो फोटो भैया और भाभी को दिखाई तो सब लोगों को बहुत हंसी आई , भैया जी केवल मुस्कुरा कर देख रहे थे । हमारा बचपन ऐसी ही न जाने कितनी नोक – झोंक से भरा था ।
मेरी शादी के बाद भैया जी एक दम ही धीर गंभीर बन गए , मेरे साथ उनका व्यवहार एकदम जिम्मेदाराना हो गया , वो मुझसे केवल मेरी कुशलता के बारे में ही बात करते हैं ,विवाह पश्चात कई बार ऐसे मौके आए जब मैं परेशान थी तो चाहे रात का समय हो चाहे दिन मेरे भैया जी मुझे मेरे साथ खड़े दिखे । मेरी गृहस्थी की जिम्मेदारियों के कारण मैं उनसे कई – कई महीनों तक नहीं मिल पाती हूँ पर वो फ़ोन से सदा मुझसे संपर्क बनाए रहते हैं , राखी का त्यौहार हमें एक छत के नीचे खींच लाता है और फिर से बाबू जी – मम्मी जी के पास हम सब इकट्ठे हो जाते हैं बहुत ही अच्छा लगता है , साल भर मैं अपने भाई से मिलूं या न मिलूं पर रक्षाबंधन के दिन मुझे अपने मायके जाने कि छूट होती है , रक्षाबंधन के दिन की ख़ुशी को शब्दों में नहीं बयाँ किया जा सकता , ईश्वर से मेरी कामना है कि मेरे जीवित रहते मुझसे रक्षाबंधन का त्यौहार न छूटे , हर रक्षाबंधन पर मेरे हाथ में राखी हो और मेरे सामने मेरे भाई कि कलाई ।
– जयश्री वर्मा
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