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कहिये नेता जी आपका कैसा और क्या हाल है,
क्यों परेशांन से हैं और क्यों यूं हाल बेहाल है,
क्यों कर डाले इतने घोटाले,कांड और हवाला,
अब झुलसा रही है आपको प्रश्नों की ज्वाला ।
खुद तो खाया ही और, रिश्तेदारों को भी खिलाया,
नोटों ही नोटों से क्यों खुद का ऊंचा महल बनाया,
महल क्या अपने लिए तो खुद ही कब्र बना डाली,
थू -थू कर रहे वो भी जो घर की करते थे रखवाली।
क्यों कमाई आपने लाखों,करोड़ों,अरबों की संपत्ति,
अब कैसे बचोगे इससे,जो ऊपर टूटी घोर विपत्ति ?
अब जब कुर्सी गई है छिन,तो मन क्यों है खिन्न,
इस पल अपराधी से आप,बिलकुल नहीं हैं भिन्न।
खुद का सम्मान पाने का था,दम्भ क्यों इतना भारी,
रिश्तेदारों को आगे बढ़ाने की,ऐसी क्या थी लाचारी,
आपकी तनख्वाह से ही,आपका पूरा काम चल जाता,
रोटी ,कपड़े की जरूरत पूरी हो मकान भी बन जाता।
अनाप-शनाप खाने से,आपकी तोंद भी न इतनी बढ़ती,
और जनता भी भूख से त्रस्त हो,दो रोटी को न लड़ती,
देश के नोटों को भरते आपको बिलकुल लाज न आई,
जनता और जेल की आपको बिलकुल याद न आई।
देश से आपने कुछ वादे किये थे,शपथ ग्रहण के समय,
फिर क्यों देश का पैसा दाबा,दांव लगाए समय-असमय,
जनता के सवाल-जवाबों से, अब आप नहीं बच पाएंगे,
ये अपमान,कलंक अब आपके जीवन संग ही जायेंगे।
अच्छा होता देश का पैसा, आप देश विकास में लगाते,
कुर्सी बचती,गरीबी हटती,और सम्मान भी खूब कमाते,
जनप्रतिनिधि बनकर आए थे,धन कुबेर कैसे बन गए,
देवदूत का रोल मिला था,तो फिर दानव कैसे बन गए।
( जयश्री वर्मा )
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