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गरज -गरज कर मेघा बरसे,
तब क्यों प्यासी धरती तरसे,
कुछ नदियों की शान बढ़ेगी,
कुछ नालों की साख चढ़ेगी,
जब खेत तृप्त हों कोंपल उगलें,
हम हरियाली आँखों में भर लें,
फिर तो धरा इठलाएगी ऐसे,
नवेली हरी ओढ़नी ओढ़े जैसे,
कृषक की सूनी आँखें देखो,
तृप्त-तृप्त सी छटा लिए,
धनधान्य से भरा हो घर,
हृदय में आशाएं जिए हुए,
रंग बिरंगे फिर फूल खिलेंगे,
फूलों के बदले में फल मिलेंगे,
तब त्योहारों की धूम रहेगी,
मन खुशियों की धार बहेगी,
लक्ष्मी छन-छन घर आएगी,
मुनिया पढ़ने स्कूल जाएगी,
क ख ग घ-पढ़ लिखकर वो,
अफसर,मास्टरनी बन जाएगी,
कंगन घर वाली को दूंगा,
सबके कपड़े सिलवाऊंगा,
मेघा जल भर -भरकर लाओ,
प्यासी धरती की प्यास बुझाओ,
टिप-टिप,टप-टप, छप-छप,छपाक,
बन्ना,कजरी,दादरा,सोहर के राग,
खिलते-इठलाते बगिया और बाग,
बाजरा,मेथी,मक्का,सरसों का साग,
मेड़ पे दौड़ें,मुन्ना, मुन्नी खेलें,
बापू मुझको,अपनी गॊद में लेले,
गुन-गुन करती घरवाली जाए,
खेतों में जब हरियाली छाए।
( जयश्री वर्मा )
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